भोपाल गैस त्रासदी विशेष रिपोर्ट: “भोपाल गैस कांड: 40 साल बाद भी न्याय की तलाश – एक विशेष पड़ताल”
भोपाल गैस त्रासदी, जिसे दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता है, आज भी लोगों के दिलों में दर्द और भय की एक गहरी छाप छोड़ती है। 2-3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के प्लांट से लीक हुई मिथाइल आइसोसाइनाइट (MIC) गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली और लाखों को जीवनभर के लिए प्रभावित कर दिया।
यह रिपोर्ट उस रात की घटनाओं, कारणों, लापरवाही, पीड़ितों की पीड़ा और आज भी बचे हुए सवालों की गहराई से पड़ताल करती है।
त्रासदी की वह भयावह रात
2 दिसंबर 1984 की रात लगभग 12:30 बजे, UCIL प्लांट के टैंक नंबर E-610 से जहरीली MIC गैस लीक होना शुरू हुई। कुछ ही मिनटों में यह गैस हवा के साथ शहर के घनी आबादी वाले क्षेत्रों में फैल गई। लोग सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन, उल्टी, और बेहोशी जैसी समस्याओं से जूझते रहे। कई परिवार सोते-सोते हमेशा के लिए मौत के आगोश में चले गए। अगली सुबह तक अस्पतालों में लाशों और मरीजों का अंबार लग गया। शहर में अफरा-तफरी का माहौल था और किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या है।
त्रासदी को 40 साल का समय बीत चुका है, लेकिन आज भी हजारों लोग, श्वसन संबंधी बीमारियों, आंखों की समस्याओं, कैंसर, जन्मजात विकार, मानसिक आघात से जूझ रहे हैं।
कई परिवार आज भी न्याय और उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
त्रासदी के कारण और लापरवाही
जांचों में पाया गया कि प्लांट में सुरक्षा मानकों की भारी अनदेखी की गई थी।
सुरक्षा उपकरण या तो खराब थे या बंद रखे गए थे।
प्रशिक्षण का अभाव था।
प्लांट की चेतावनी प्रणाली समय पर सक्रिय नहीं हुई।
रखरखाव में गंभीर लापरवाही हुई।
कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने इसे "दुर्घटना नहीं, बल्कि मानव निर्मित आपदा" बताया।


